ज़ियारत के लिए

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हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत के लिए पढ़ें

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सूफ़ियाना बसंत पंचमी...

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फ़िरदौस ख़ान
सूफ़ियों के लिए बंसत पंचमी का दिन बहुत ख़ास होता है... हमारे पीर की ख़ानकाह में आज बसंत पंचमी मनाई गई... बसंत का साफ़ा बांधे मुरीदों ने बसंत के गीत गाए... हमने भी अपने पीर को मुबारकबाद दी...

बसंत पंचमी के दिन मज़ारों पीली चादरें चढ़ाई जाती हैं, पीले फूल चढ़ाए जाते हैं... क़व्वाल पीले साफ़े बांधकर हज़रत अमीर ख़ुसरो के गीत गाते हैं...
कहा जाता है कि यह रिवायत हज़रत अमीर ख़ुसरो ने शुरू की थी... हुआ यूं कि हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (रह) को अपने भांजे सैयद नूह की मौत से बहुत सदमा पहुंचा और वह उदास रहने लगे. हज़रत अमीर ख़ुसरो से अपने पीर की ये हालत देखी न गई... वह उन्हें ख़ुश करने के जतन करने लगे... एक बार हज़रत अमीर ख़ुसरो अपने साथियों के साथ कहीं जा रहे थे... उन्होंने देखा कि एक मंदिर के पास हिन्दू श्रद्धालु नाच-गा रहे हैं... ये देखकर हज़रत अमीर ख़ुसरो को बहुत अच्छा लगा... उन्होंने इस बारे में मालूमात की कि तो श्रद्धालुओं ने बताया कि आज बसंत पंचमी है और वे लोग देवी सरस्वती पर पीले फूल चढ़ाने जा रहे हैं, ताकि देवी ख़ुश हो जाए...
इस पर हज़रत अमीर ख़ुसरो ने सोचा कि वह भी अपने औलिया को पीले फूल देकर ख़ुश करेंगे... फिर क्या था. उन्होंने पीले फूलों के गुच्छे बनाए और नाचते-गाते हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (रह) के पास पहुंच गए... अपने मुरीद को इस तरह देखकर उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई... तब से हज़रत अमीर ख़ुसरो बसंत पंचमी मनाने लगे...

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दुआओं का असर...

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फ़िरदौस ख़ान
गुज़श्ता दिनों की बात है... हमारी एक रिश्तेदार ने अपनी बेटी की शादी की... बारात में दो सौ लोगों को दावत दी गई... खाना इतना पकवाया गया कि अगर कुछ लोग ज़्यादा भी हो जाएं, तो कम न पड़े... यानी ढाई सौ लोग तक खाना खा सकें... खाना पककर तैयार हो गया... अपने तयशुदा वक़्त पर बारात भी आ गई...
लेकिन बारात में ज़्यादा लोग आ गए... कुछ बाराती अपने यार-दोस्तों को भी ले आए... इस तरह तक़रीबन साढ़े तीन सौ लोग हो गए... अब सौ लोगों के खाने का क्या होगा... ये सोचकर लड़की के घरवाले परेशान हो गए... अगर एक भी बाराती भूखा रह गया, तो बहुत ज़िल्लत का सामना करना पड़ेगा...
ख़ुशी के माहौल ग़मग़ीन हो गया... एक बुज़ुर्ग यह सब देख रहे थे... उन्होंने लड़की के घरवालों से कहा कि परेशान न हो, अल्लाह मालिक है... एक कटोरे में पानी ले आओ... पानी से भरा कटोरा आ गया... उन्होंने एक दुआ पढ़ी और पाने पर दम कर दी... उन्होंने कहा कि खाने की सभी देग़ों में थोड़ा-थोड़ा पानी डाल दो, थोड़ा पानी आटे में भी डाल देना... लड़की के घरवालों ने ठीक ऐसा ही किया...
अल्लाह का करम ये हुआ कि सब बाराती खाना खाकर चले गए और आधा देग़ बिरयानी बच भी गई...
ये होता है दुआओं का असर...

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आबे-ज़मज़म

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आबे-ज़मज़म के पानी को पाक माना जाता है. ज़मज़म 18 x 14 फ़ुट और 13 मीटर गहरा कुआं है, जो चार हज़ार साल पहले शुरू वजूद में आया.शुरू से आज तक ये कभी सूखा नहीं और न ही इसके पानी का ज़ायक़ा बदला है. कुएं में पेड़-पौधे भी नहीं उगते, जिससे पानी कभी मैला नहीं होता. यूरोप के बड़े-बड़े लैब ने इस पानी का मुआयना किया और इसे पीने के लिए बेहतरीन बताया.
ये छोटा कुआं तक़रीबन दो करोड़ लोगो को पानी मुहैया कराता है.
कुएं में ऐसी मोटरे लगाई गई हैं, जो हर सेकेंड आठ हज़ार लीटर पानी खींचती हैं. ये मोटरें 24 घंटे चलती रहती हैं. यह इसकी शान है कि यह कुआं सिर्फ़ 11 मिनट मैं फिर से पहले की तरह भर जाता है, इसलिए इसके पानी का स्तर कभी कम नहीं होता.

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अल्लाह की रज़ामंदी का सबब है नमाज़

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रिवायत में है कि जब बन्दा ख़ुशदिली से नमाज़ पढ़ने में मशग़ूल हो जाता है, तो उसका दिल नूर से भर जाता है और उसके सिर से आसमान की बुलंदी तक नूर का एक सिलसिला क़ायम हो जाता है.
* जब कोई बन्दा नमाज़ में मशग़ूल रहता है, तो उतनी देर तक उसके चारों तरफ़ फ़रिश्ते जमा रहते हैं.
* जब बन्दा नमाज़ पढ़ता है, तो उसको परवरदिगार का क़ुर्ब (क़रीबी) हासिल होता है.
* बन्दा जब नमाज़ पढ़ता है, तो उसके सिर पर एक फ़रिश्ता मंडलाता है और कहता है- अगर तुझे मालूम हो जाए कि इस वक़्त तू सरापा नूरे-कामिल की बारगाह में  इबादत में मशग़ूल है, तो क़यामत तक सलाम फेरना न चाहेगा.
* क़यामत के रोज़ सबसे पहले नमाज़ियों का गिरोह जन्नत में दाख़िल होगा, तब उनका हाल यह होगा कि उनके चेहरे नूरे-ईमान से सूरज की तरह चमक रहे होंगे.
नमाज़ के सवाब के बारे में हज़रत अली (रज़िअल्लाहु अन्हु) फ़रमाते हैं-
* नमाज़ अल्लाह तआला की रज़ामंदी का सबब है.
* नमाज़ फ़रिश्तों की मुहब्बत का वसीला है.
* नमाज़ अम्बिया अलैहिस्स्लाम का तरीक़ा है.
* नमाज़ रिज़्क़ की कुशादगी का सबब है.
* नमाज़ इस्लाम की बुनियाद है.
* नमाज़ बन्दों की दुआएं क़ुबूल होने का ज़रिया है.
* नमाज़ नेकियों की जड़ है.
* नमाज़ शैतान के ख़िलाफ़ हर्बा (हथियार) है.
* नमाज़ क़ब्र की तारीकी (अंधेरे) में रौशनी है.
*  नमाज़ क़यामत में बख़्शीश का वसीला है.

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जन्नत के दरवाज़े खोलने वाली नमाज़

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जो शख़्स चार रकअत नफ़िल पढ़े और हर रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह इख़लास 21 बार पढ़े, तो अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोलेगा और दोज़ख़ के सातों दरवाज़े बंद कर देगा. और वह शख़्स तक न मरेगा, जब तक अपना मकान जन्नत में न देख ले.





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73 फ़िरक़ों में सिर्फ़ एक हक़ पर

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रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- मेरी उम्मत 73 फ़िरक़ों में बट जाएगी, जिनमें से सिर्फ़ एक फ़िरक़ा जन्नती होगा और सब जहन्नुमी. और इस फ़िरक़े की निशानी आप  (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ये बयान की-
मा अना अलैह व असहाबी
तर्जुमा- जो मेरे और मेरे सहाबा के तरीक़े पर चलने वाला होगा.

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पेट के मर्ज़ का रूहानी इलाज

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 पेट के मर्ज़ का रूहानी इलाज

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दुआ की फ़ज़ीलत

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इंसान को हमेशा दुआ मांगते रहना चाहिए, अपने लिए, सबके लिए, कुल कायनात के लिए...
✏ दुआ करना अफ़ज़ल इबादत है. (हाकिम)
✏ दुआ ख़ुद एक इबादत है. (नसाइ)
✏ दुआ इबादत ही है. (अहमद)
✏ दुआ मोमिन का हथियार है. (हाकिम)
✏ अल्लाह की नज़र में दुआ से ज़्यादा क़ाबिल-ए-क़द्र कोई भी चीज़ नहीं है. (तिर्मिज़ी)
✏ जो अल्लाह से दुआ नहीं करता, उससे वह नाराज़ होता है. (अबु दाऊद)
✏ जब कोई अल्लाह पाक से मांगे, तो ज़्यादा से ज़्यादा मांगे, क्योंकि वह अपने रब से मांग रहा है. (इब्न हब्बान)
✏ दुआ के सिवा कोई ची तक़दीर को बदल नहीं सकती. (तिर्मिज़ी)
✏ अल्लाह पाक से दुआ किया करो, इस हाल में कि तुम्हें उसकी क़ुबूलीयत का यक़ीन हो, जान लो कि अल्लाह ग़ाफ़िल और बेपरवाह दिल की दुआ क़ुबूल नहीं करता. (तिर्मिज़ी)
✏ जिसे यह पसंद हो कि अल्लाह पाक तंगदस्ती के वक़्त उसकी दुआएं क़ुबूल फ़रमाए, वह ख़ुशहाली में दुआ की कसरत किया करे. (तिर्मिज़ी)
✏ अल्लाह पाक इस बात को नापसंद फ़रमाता है कि कोई बन्दा उसकी बारगाह में हाथ उठाए और वह उसे ख़ाली लौटा दे. (तिर्मिज़ी)
✏ अल्लाह पाक ज़्यादा दुआएं क़ुबूल करने वाला है. (अहमद)
✏ अज़ाब-ए-क़ब्र से अल्लाह की पनाह मांगो. (इब्न हब्बान)
✏ मैय्यत के लिए ज़िन्दों का बेहतरीन तोहफ़ा दुआ है. (अहमद)
✏ जो कोई तमाम मोमिन मर्दों और औरतों के लिए दुआ-ए-मग़फ़िरत करता है, अल्लाह पाक उसके लिए तमाम मोमिन मर्द और औरत के बदले एक नेकी लिख देता है. (तबरानी)
✏ जो शख़्स अल्लाह पाक से तीन बार जन्नत का सवाल करे, तो जन्नत कहती है- ऐ अल्लाह ! इस को जन्नत में दाख़िल कर दे और जो शख़्स तीन बार जहन्नम से पनाह मांगे, तो जहन्नम कहती है- ऐ अल्लाह ! इस को जहन्नम से बचा ले. (तिर्मिज़ी)
जब तुम अल्लाह पाक से सवाल करो, तो जन्नतुल-फ़िरदौस का सवाल किया करो, क्योंकि वह जन्नत का आला और अफ़ज़ल हिस्सा है. (बुख़ारी)
अल्लाहुम्मा इन्नी असआलुकल जन्नतुल-फ़िरदौस
(तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मैं तुझ से जन्नतुल फ़िरदौस का सवाल करता हूं)
✏ जो भी मुसलमान दुआ करता है, जिसमें कोई बुराई न हो और न रिश्तेदारों के साथ क़तअ ताल्लुक़ी होती हो, तो अल्लाह उस दुआ के बदले इन तीन बातों मे से कोई एक ज़रूर अता फ़रमाता है-
या जल्दी ही उसकी दुआ क़ुबूल फ़रमाता है.
या उसे आख़िरत के लि महफ़ूज़ रख लिया जाता है.
या उसके बदले कोई आफ़त और मुसीबत दूर कर दी जाती है. (अहमद)
आमीन, सुम्मा आमीन
दुआ के बाद आमीन कहना सुन्नत है. (हाकिम)

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हयातुल वुज़ू की फ़ज़ीलत

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वुज़ू के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ने की फ़ज़ीलत
जिसने वुज़ू किया और अच्छी तरह वुज़ू किया, फिर अच्छी तरह दिल और दिमाग़ को हाज़िर रखकर दो रकअत नमाज़ पढ़ी, उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है.
(सही मुस्लिम)
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत बिलाल रज़िअल्लाहु अन्हु से फ़रमाया- ऐ बिलाल ! (रज़िअल्लाहु अन्हु) मुझे अपना वह अमल बताओ जिस पर इस्लाम लाने के बाद तुमको सबसे ज़्यादा अज्र और सवाब की उम्मीद है, क्योंकि मैंने अपने आगे जन्नत में तुम्हारी जुतियों की आवाज़ सुनी है. हज़रत बिलाल (रज़िअल्लाहु अन्हु) ने कहा- मैंने रात या दिन को जिस वक़्त भी वुज़ू किया है, उस वज़ू से जो नमाज़ अल्लाह पाक ने मेरी क़िस्मत में लिखी, वह मैंने ज़रूर पढ़ी है. बस यही वह अमल है, इस्लाम लाने के बाद मैं इस पर सबसे ज़्यादा अज्र और सवाब की उम्मीद रखता हूं.
(सही बुख़ारी)


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दोज़ख़ से निजात

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हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़िअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया- जिस तरह कपड़े के नक़्श और निगार घिस जाते हैं और मांद पड़ जाते हैं, उसी तरह इस्लाम भी एक ज़माने में मांद पड़ जाएगा. यहां तक कि किसी शख़्स को ये इल्म तक न रहेगा कि रोज़ा क्या चीज़ है, और सदक़ा और हज क्या चीज़ ? एक शब आएगी कि क़ुरआन सीनों से उठा लिया जाएगा और ज़मीन पर उसकी एक आयत भी बाक़ी न रहेगी. अलग-अलग तौर पर कुछ बूढ़े मर्द और कुछ बूढ़ी औरतें रह जाएंगी, जो ये कहेंगी कि हमने अपने बुज़ुर्गों से यह कलमा ला इलाहा इल्लल्लाह सुना था, इसलिए हम भी यह कलमा पढ़ लेते हैं.
हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़िअल्लाहु अन्हु) के शागिर्द ने पूछा- जब उन्हें रोज़ा, सदक़ा और हज का भी इल्म न होगा, तो भला सिर्फ़ यह कलमा उन्हें क्या फ़ायदा देगा ?
हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि) ने कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने तीन बार यही सवाल दोहराया. हर बार हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि) एराज़ करते रहे, उनके तीसरी मर्तबा इसरार के बाद उन्होंने फ़रमाया- सिला ! यह कलमा ही उनको दोज़ख़ से निजात दिलाएगा.
(मुस्तदरक हाकिम)

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हज़रत नूह (अलै) की वसीयत

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हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़िअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया- क्या मैं तुम्हें वह वसीयत न बताऊं, जो (हज़रत) नूह (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटे को की थी ?
सहाबा (रज़िअल्लाहु अन्हु) ने अर्ज़ किया- ज़रूर बताइये.
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया- (हज़रत) नूह (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटे को वसीयत में फ़रमाया- मेरे बेटे! तुमको दो काम करने की वसीयत करता हूं और दो कामों से रोकता हूं. एक तो मैं तुम्हें ला इलाहा इल्लल्लाह के कहने का हुक्म देता हूं, क्योंकि अगर ये कलमा एक पलड़े में रख दिया जाए और तमाम आसमान और ज़मीन  को एक पलड़े में रख दिया जाए, तो कलमा वाला पलड़ा झुक जाएगा. और अगर तमाम आसमान और ज़मीन का एक घेरा हो जाए, तो भी यह कलमा इस घेरे को तोड़ कर अल्लाह तआला तक पहुंच जाएगा.  दूसरी चीज़ जिसका हुक्म देता हूं, वह सुबहानल्लाहि अज़ीमि व बिहम्दिह का पढ़ना है, क्योंकि यह तमाम मख़्लूक की इबादत है और इसी की बरकत से मख़्लूक़ात को रोज़ी दी जाती है. और मैं तुमको दो बातों से रोकता हूं, शिर्क से और तकब्बुर से, क्योंकि ये दोनों बुराइयां बन्दे को अल्लाह से दूर कर देती हैं.
(मुन्तख़ब अहादीस) 

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सबसे अफ़ज़ल ज़िक्र

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हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि) फ़रमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को यह इरशाद फ़रमाते हुए सुना- तमाम अज़कार में सबसे अफ़ज़ल ज़िक्र ला इलाहा इल्लल्लाह है और तमाम दुआओं में सबसे अफ़ज़ल दुआ अलहम्दु लिल्लाह है.
(तिर्मिज़ी) 
हज़रत अबू हुरैरह फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया- जब कोई बन्दा दिल के इख़्लास के साथ ला इलाहा इल्लल्लाह कहता है, तो इस कलमा के लिए यक़ीनी तौर पर आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं. यहां तक कि कलमा सीधे अर्श तक पहुंच जाता है, यानी फ़ौरन क़ुबूल होता है. बशर्ते कलमा कहने वाला कबीरा गुनाहों से बचता हो.
(तिर्मिज़ी)

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पेशाब में परेशानी का रूहानी इलाज

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पेशाब में परेशानी का रूहानी इलाज

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بسم الله الرحمن الرحيم

بسم الله الرحمن الرحيم

Allah hu Akbar

Allah hu Akbar
अपना ये रूहानी ब्लॉग हम अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान और अम्मी ख़ुशनूदी ख़ान 'चांदनी' को समर्पित करते हैं.
-फ़िरदौस ख़ान

This blog is devoted to my father Late Sattar Ahmad Khan and mother Late Khushnudi Khan 'Chandni'...
-Firdaus Khan

इश्क़े-हक़ी़क़ी

इश्क़े-हक़ी़क़ी
फ़ना इतनी हो जाऊं
मैं तेरी ज़ात में या अल्लाह
जो मुझे देख ले
उसे तुझसे मुहब्बत हो जाए

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